भोपाल ~सुख दुःख के ताने बाने को जिसने लफ़्ज़ों से सिया है, सही मायनों में वो ही कलमप्रिया है"~~
मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन~~
सुख दुःख के ताने बाने को जिसने लफ़्ज़ों से सिया है, सही मायनों में वो ही कलमप्रिया है" । इन खूबसूरत पंक्तियों के साथ मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन की भोपाल इकाई के अध्यक्ष अभिषेक वर्मा ने सभी आदरणीय वक्ताओं का स्वागत किया। मौका था सम्मेलन द्वारा आयोजित प्रतिष्ठित कार्यक्रम "कलामप्रिया" का, जिसे शनिवार को मायाराम सुरजन भवन में आयोजित किया गया था। कोरोनाकाल के बाद मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मलेन का ये पहला ऑफलाइन कार्यक्रम था, जिसमें महिला साहित्यकारों के साथ "वर्त्तमान साहित्य परिदृश्य में स्त्री" विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम में डॉ. नीलकमल कपूर, संगीता गुंदेचा, डॉ. रेखा कस्तवार, डॉ. नुसरत मेहदी और डॉ. ऋतू पांडेय शर्मा ने बतौर पैनल शिरकत की। चर्चा में इस बात पर रौशनी डाली गई कि महिला साहित्यकार अपने साथी पुरुष साहित्यकारों के काम का कितना मूल्यांकन करती हैं। डॉ. नुसरत मेहदी ने उर्दू अदब के माहौल पर तो रौशनी डाली ही, साथ ही इस बात को पुख्ता तरीके से रखा की नए ज़माने में स्त्रियां साहित्य में अच्छा काम कर रही हैं। संगीता गुंदेचा जो नाट्यशास्त्र की जानकार हैं, ने कहा की यहाँ पर स्त्रियों की क्रांति की दिशा ज़रूर थोड़ी भटकी,लेकिन स्त्री अपना मक़ाम ढूंढ लेगी। डॉ. नीलकमल कपूर ने कहा की सृजन स्त्री का बेसिक कैरेक्टरिस्टिक है। और वो स्त्री हमेशा आगे बढ़ती है जो खुद तय कर लेती है की उसे आगे बढ़ना है। रेखा कस्तवार जो जानीमानी कथाकार और समीक्षक हैं, उन्होंने कहा कि इस वक़्त भी बहुत अच्छे महिला किरदार गढ़े जा रहे हैं। उसमें भी स्त्री के आगे बढ़ने की जिजीविषा साफ़ नज़र आती है। बीइंग मिंडफुल पत्रिका की संपादक और लेखिका डॉ. ऋतू पांडेय शर्मा ने कहा कि सृजन स्त्री के लिए आम है और अब स्त्री ने खुद को पहचानकर इसे आगे बढ़ाना शुरू कर दिया है।
कार्यक्रम के दूसरे चरण में सभी वक्ताओं ने अपनी रचनाओं का पाठ भी किया।
कविता : मैंने वृक्ष होना चाहा
- डॉ. ऋतू पांडेय शर्मा
कविता: फ्रीडा काहरो पर दो छोटी कवितायेँ सुनाई
१. आह शाम की पीड़ा का ये सांवलापन
फ्रीडा काहरो मैं मरना चाहता हूँ
मगर मैं ये नहीं जानता की मरा कैसे जाता है
- संगीता गुंदेचा
शार्ट स्टोरी सुनाई
नाम : घुटन
- डॉ. नीलकमल कपूर
ख़ैरियत ग़ैर की मानिन्द हमारी मत पूछ
ये तकल्लुफ़ तो हुआ जाता है भारी मत पूछ
सिलसिले दर्द के कैसे हुए जारी, मत पूछ
और करने दे हमें ज़ख़्म शुमारी, मत पूछ
तेरे होने में न होने का गुमां है, सो अभी
दिल को करने दे ज़रा रायशुमारी, मत पूछ
ज़ब्त से काम लिया ख़ुश भी रहे हंस भी दिए
उफ़्फ़ मगर मरहला ए हिज्र गुज़ारी, मत पूछ
कितनी बे रब्त नज़र आती हैं आंखें नुसरत
मौत जब होती है आसाब पे तारी, मत पूछ
- डॉ. नुसरत मेहदी
शब्दार्थ
ज़ख्म शुमारी - घावों की गिनती
मरहला ए हिज्र गुज़ारी - विरह की बेला बिताने की कठिनाई, चुनौती
बे रब्त - असम्बद्ध
आसाब - स्नायु तन्त्र
कहानी: छोटी कहानी
शीर्षक: अपने अपने अलावा
- डॉ. रेखा कस्तवार
कार्यक्रम में मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन के प्रदेश अध्यक्ष पलाश सुरजन, अशोक मनवानी, प्रेम शंकर शुक्ल आदि सम्मानीय अतिथि मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन की भोपाल इकाई के उपाध्यक्ष अनुराग तिवारी ने किया। चर्चा की मध्यस्तता भोपाल इकाई की सचिव शरबानी बैनर्जी ने की।
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